पश्चिम बंगाल के बहरामपुर से एक बहुत ही शर्मसार मामला सामने आया है जहां 50 मानिसक रोगियों को सामान्य इंसान की मानसिकता का शिकार होना पड़ रहा है।
यहां एक पुनर्वास केंद्र (मेंटल हॉस्पिटल) में मौजूद सभी मरीजों को पूरी तरह से बिना कपड़ो के रहने के लिए मजबूर कर दिया गया है। जिनमें 20 महिला मरीज़ भी शामिल हैं। केंद्र चला रहे अधिकारियों का कहना है कि मरीजों के कपड़े बेहद गंदे होते है, इसलिए ऐसा किया गया है।
कोलकाता स्थित मानसिक स्वास्थ्य अधिकार संगठन ‘अंजली’ के सदस्यों ने कई बार इस मुद्दे को बहरामपुर मेंटल हॉस्पिटल अथॉरिटी के सामने रखा लेकिन उन्होंने इस पर कोई खास कार्यवाही नहीं की। संगठन की एक सदस्य सुमन भट्टाचार्य बताती हैं, ‘हम हफ्ते में करीब पांच दिन मरीजों को ट्रेनिंग देने के लिए जाते हैं। हर बार वहां जाकर हमें बहोत बुरा लगता है। हम उनकी ऐसी दयानिये दशा देखकर बहूत बुरा लगता हैं। हमने कई बार हॉस्पिटल अथॉरिटी से इस बारे में कहा कि मरीजों के रहने के लिए समुचित व्यवस्था करे लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।’
सुमन और उनकी सहयोगी अदिति बसु ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हॉस्पिटल के मरीज़ों से मिलने का फैसला किया था, और वहां जाकर उनकी बद्तर स्थिति को सबके सामने लाने का फैसला किया।
जब टाइम्स ऑफ इंडिया ने हॉस्पिटल में ही रहने वाली काजल मेहता से बात की तो उन्होंने बताया कि मरीज़ों को गंदे फर्श पर ही सोना पड़ता है और बहुत ही गंदे टॉइलट्स का इस्तेमाल भी करना पड़ता है। वह बताती हैं, ‘बाथरूम इतने गंदे हैं, कि उसे इस्तेमाल कर पाना लगभग नामुमकिन है। उसके आस-पास हमेशा पानी जमा रहता है जिस कारण कई बार मरीज़ फिसलकर गिर चुके हैं। यहाँ तक की कुछ मरीजों को कई महीनो से नहलाया तक नहीं गया है।
हॉस्पिटल के पर्यवेक्षक (सुपरिन्टेंडेंट) पबित्र सरकार का इस मुद्दे पर कहना है कि मरीज़ मानसिक तौर पर ठीक नहीं हैं और वे कपड़े पहनने और उसे संभाले रखने में असक्षम हैं।