कलम की सोच पत्थर के पंख

एक बहुत बड़े राजमहल के निकट पत्‍थरों को एक ढ़ेर लगा हुआ था। कुछ बच्‍चे वहां खेलते हुए निकले। एक बच्‍चे ने पत्‍थर उठा लिया और महल की खिड़की की तरफ फेंका। वह पत्‍थर उपर उठने लगा। पत्‍थरों की जिंदगी में यह नया अनुभव था। पत्‍थर नीचे की तरफ जाते है। ऊपर की तरफ नहीं। ढलान पर लुढ़कते है, चढ़ाई पर चढ़ते नहीं। तो यह अभूतपूर्व घटना थी, पत्‍थर का ऊपर उठना। नया अनुभव था। पत्‍थर फूल कर दुगुना हो गया जैसे कोई आदमी उदयपुर से फेंक दिया जाये और दिल्‍ली की तरफ उड़ने लगे। तो फूल कर दुगुना हो जाए। वैसा वह पत्‍थर जमीन पर पडा हुआ, जब उठने लगा राजमहल की तरफ तो फूल कर दुगुना हो गया। आखिर पत्‍थर ही ठहरा, अक्ल कितनी, समझ कितनी,फूल कर दुगुना वज़नी हो गया ऊपर उठने लगा।

नीचे पड़े हुए पत्‍थर आंखें फाड़ कर देखने लगे। अद्भुत घटना घट गयी थी। उनके अनुभव में ऐसी कोई घटना न थी। की कोई पत्‍थर ऊपर उठा हो। वे सब जयजयकार करने लगे। धन्‍य-धन्‍य करने लगे। हद्द हो गई, उनके कुछ में उनके वंश में ऐसा अद्भुत पत्‍थर पैदा हो गया, जो ऊपर उठ रहा है। और जब नीचे होने लगा जयजयकार और तालियां बजने लगीं। और हो सकता है पत्‍थरों में कोई अख़बार नवीस हों, जर्नलिस्‍ट हों,उन्‍होंने खबर छापी हो; कोई फोटोग्राफर हो, उन्‍होंने फोटो निकाली हो; कोई चुनाव लड़ने वाला पत्‍थर हो, उसने कहा हो ये मेरा छोटा भाई है। जो देखो ऊपर जा रहा है। कुछ हुआ होगा नीचे,वह ज्‍यादा तो मुझे पता नहीं विस्‍तार में,लेकिन नीचे के पत्‍थर बहुत हैरान हो रहे थे, और गर्व के मारे जयजयकार चिल्‍लाने लगे। नीचे की जयजयकार उस ऊपर के पत्‍थर को भी सुनाई पड़ी। जयजयकार किसको सुनाई नहीं पड़ जाती है। वह तो सुनाई पड़ ही जाती है। वह उसे सुनाई पड़ गई। उसने चिल्‍लाकर कहा कि मित्रों घबडाओं मत, मैं थोड़ा आकाश की यात्रा को जा रहा हूं। उसने कहा: मैं जा रहा हूं आकाश की यात्रा को, और लौट कर तुम्‍हें बता सकूंगा वह का हाल।

गया, महल की कांच की खिड़की से टकराया। तो पत्‍थर टकराएगा कांच की खिड़की से तो स्‍वाभाविक कि कांच चूर-चूर हो जाएगा। इसमें पत्‍थर की कोई बहादुरी नहीं है। इसमें केवल कांच का कांच होना और पत्‍थर का पत्‍थर होना है। इसमें कोई कांच की कमजोरी नहीं है, और पत्‍थर की बहादुरी नहीं है। लेकिन पत्‍थर खिलखिला कर हंसा। जैसे कि नेता अक्‍सर खिलखिलाते है। और हंसते है। और पत्‍थर ने कहा: कितनी बार मैंने नहीं कहां कि मेरे रास्‍ते में कोई न आए, नहीं तो चकनाचूर हो जायेगा। वह वहीं भाषा बोल रहा था जो राजनीति की भाषा है जो मेरे रास्‍ते में आयेगा। चकनाचूर हो जाएगा। देखा अब अपना भाग्‍य, चकनाचूर होकर पड़े हो।

और वह पत्‍थर गिरा महल के कालीन पर। बहुमूल्‍य कालीन बिछा था। थक गया था। पत्‍थर, लंबी यात्रा की थी। सड़क की गली से महल तक की यात्रा कोई छोटी यात्रा है। बड़ी थी यात्रा, जीवन-जीवन लग जाते है गली से उठते, महल तक पहुंचते। थक गया था। पसीना माथे पर आ गया होगा, गिर पड़। कालीन पर गिर कर उसने ठंडी सांस ली और कहा; धन्‍य, धन्य है ये लोग। क्‍या मेरे पहुंचने की खबर पहले ही पहुंच गई थी जिससे मेरे स्‍वागत के लिए, कालीन पहले ही बिछा रखा था। और ये लोग कितने अतिथि-प्रेमी है। कैसा स्‍वागत सत्‍कार के प्रेमी, महल बना कर रखा मेरे लिए? क्‍या पता था कि मैं आ रहा हूं? ठीक जगह खिड़की बनाई, जहां से मैं आने को था। ठीक-ठाक सब किया कोई भेद न पडा एक इंच मैं चुका नहीं। जो मेरा मार्ग था आने का, वहां खिड़की बनाई। जो मेरा मार्ग था विश्राम का, वहां कालीन बिछाए गये। बड़े अच्‍छे लोग है।

और यह वह सोचता ही था कि राजमहल के नौकर को सुनाई पड़ी होगी आवाज टूट जाने की कांच की, वह भाग हुआ आया, उसने उठाया पत्‍थर को हाथ में। पत्‍थर तो, पत्‍थर तो, ह्रदय गदगद हो उठा। उसने कहां: आ गया मालूम होता है मकान मालिक, स्‍वागत में हाथ में उठाता है प्रेम दिखलाता है। कितने भले लोग।

और फिर उस नौकर ने पत्‍थर को वापस फेंक दिया। तो उस पत्‍थर ने मन में कहा: वापस लौट चलें, घर की बहुत याद आती है। होम सिकनेस मालूम होती है। वह वापस गिरने लगा अपनी ढेरी पर, नीचे तो आंखे फाड़े हुए लोग बैठे थे। उनका मित्र उसका साथी, गया था आसमान की यात्रा को, चंद्रलोक गया था वह लौट कर आया था। वह गिरा नीचे, फूल मालाएँ पहनाई गई, कई दिन तक जलसे चले, कई जगह उदघाटन हुआ और न मालूम क्‍या-क्‍या हुआ। और उन पत्‍थरों ने पूछा कि क्‍या-क्‍या किया। उसने अपनी लंबी कथा कहीं: मैंने यह किया,वह किया, मेरा कैसा स्‍वागत सत्‍कार हुआ। ऐसी-ऐसी जगह मेरा सत्‍कार हुआ। इतने-इतने शत्रु मरे। कई चीजों का गुणन फल किया उसने। एक कांच मारा था, कई कांच बताये। एक महल में ठहरा था । कई महलों में ठहरा हुआ बतलाया। एक हाथ में गया था। अनेक हाथों में पहुंचने की खबर दी। जो बिलकुल स्वाभाविक है, आदमी का मन। आदमी का मन जैसा करता तो पत्‍थर का मन तो और ज्‍यादा करेगा। और जब उसके पत्‍थरों ने कहा: मित्र तुम अपनी आत्‍म कथा जरूर लिख दो, हमारे बच्‍चों के काम आयेगी। ऑटोबायोग्राफी लिखो, क्‍योंकि सभी महापुरुष लिखते है। तुम भी लिखो।

वह लिख रहा है। जल्‍दी ही लिख लेगा तो आपको पता चलेगी। खबर हो जायेगी। क्‍योंकि उसके पहले भी और पत्‍थरों ने लिखी है और उनको आप अच्‍छी तरह पढ़ते है। यह भी लिखेगा , उसकी भी पढ़ेंगे।

इस पत्‍थर की कथा पर आपको हंसी क्‍यों आती है। इस बेचारे पत्‍थर में कौन सी खराबी है। यह आदमी से कौन सा भिन्‍न है? और इस पत्‍थर पर हम हंसते है पर अपने पर नहीं। क्‍या हमें भी किन्‍हीं अंजान हाथों ने नहीं फेंका है। हम पता है हम क्‍यों जन्‍म लेते है। हमें पता है हमें कौन फेंक देता है। लेकिन नहीं हम तो कहते है ये मेरा जन्‍म दिन है। किस ने तारिख निर्धारित की थी हमारे जन्‍म की। जो हम कहते है हमारा जन्‍म दिन है। क्‍या ये हमारे बस का निर्णय था। क्‍या यह हमारी च्‍वाइस थी। या पूछी गई थी। न पूछा दिन, न तारिख और हम कैसे मान लेते है यह मेरा जन्‍म दिन। सब एक दुर्घटना मात्र है। जो हम छल्‍ले जा रही है।

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