अमावस्या प्रत्येक मास में पड़ती है, परन्तु माघ मास की अमावस्या का विशेष महत्व है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ब्रहमा जी ने इसी दिन मनु और सतरूपा को उत्पन्न कर सृष्टि का निर्माण कार्य आरम्भ किया था। पितरों के सम्बन्ध में सभी श्राद्ध-तर्पण आदि सारे कार्य अमावस्या तक और सकाम अनुष्ठान या महत्वपूर्ण यज्ञ आदि कार्य शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक किए जाते हैं। इन सभी युतियों में माघ माह में सूर्य एवं चन्द्र के मिलन को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक इस बीच सभी देवी देवता प्रयाग तीर्थ में एकत्रित होते हैं माघ की अमावस्या के अवसर पर यहां पितृलोक के सभी पितृदेव भी आते हैं। अतः माघ की अमावस्या का दिन पृथ्वी पर देवों एवं पितरों के संगम के रूप में मानाया जाता हैं।
इस महा-पुण्यदायक दिन में मौनव्रत रखने का नियम है, इसी वजह से इसे मौनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस अमावस्या के बारे में कहा गया है कि मौनी अमावस्या दिन मन, कर्म, तथा वाणी के जरिए किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए। इसमें केवल बंद होठों से उपांशु क्रिया के जरिए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, ॐ खखोल्काय नमः, ॐ नमः शिवाय मंत्र पढ़ते हुए अर्घ्य देना चाहिए। समुद्र मंथन में प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जहां-जहां भी अमृत की बूंदें गिरी थीं उन-उन जगहों पर यदि मौनी अमावस्या के दिन जप-तप, स्नान आदि किया जाए तो सुखप्रप्ति और पुण्यप्रद होता है।
अगर आपका कहीं जाना संभव न हो पाए तो घर में ही प्रात:काल दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान जप करें। इस दिन पुण्य काम करें जैसे गरीबों को अन्न, वस्त्र, धन दान करे, जरूरतमंद लोगो की सेवा करे आदि। इस दिन तिल दान भी सबसे उत्तम कहा गया है। सतयुगमें में तप से, द्वापर में श्रीहरि की भक्ति से, त्रेता में ब्रह्मज्ञान और कलियुग में दान से मिले हुए पुण्य के बराबर माघ मास की मौनी अमावस्या में केवल किसी भी संगम में स्नान दान से भी उतना ही पुण्य मिल जाता है। इस दिन स्नान के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान देना चाहिए।