एक नकारात्मक सत्ता अंधकार है, वहीं रोशनी का अभाव होता है। यह रोशनी कई बार परिस्थितियों की वजह से भी खो जाती है, किन्तु वैसी स्थिति में ईश्वर ने मनुष्य को वैसी ही क्षमता दे रखी है कि वह उनका उपयोग कर रोशनी के अभाव को दूर कर सके। लेकिन अंधकार को देखकर जो लोग भयभीत होते है, उससे डरते या परेशान होते है। उनके लिए अंधकार से मुक्ति पाने का कोई उपाय नहीं है।
अंधकार के समान दुःख भी एक नकारात्मक भाव है। इसका कोई अस्तित्व नहीं होता है। लोग अपनी गलतियों और त्रुटियों के बारे में सोचता रहे तथा बहार के सुख और आनन्द से वंचित रहे, तो इसमें ईश्वर का कोई दोष नहीं है।
परमात्मा ने तो संसार में चारों ओर सुख, आनंद तथा प्रफुल्लता की रौशनी बिखेरी है। अपनी भ्रान्तियों और त्रुटियों की दीवारों में, समझ और दर्शन के दरवाजों, खिड़कियों को बंदकर कृत्रिम रुप से अंधकार पैदा किया जा सकता है। हमेशा जो दुःखी, संतप्त, व्यथित और वेदनाकुल नजर आते हैं, उनकी पीड़ा के लिए बाहरी कारण नहीं, अपनी संकीर्णता की दीवारें उनके लिए उत्तरदायी हैं। परिस्थितिवश कोई समस्या या परेशानी उत्पन्न हो जाये, तो उसके लिए भी विचार करना आवश्यक नहीं है। ईश्वर ने नकारात्मक अंधकार को दूर भगाने के लिए मनुष्य और जीवो को उन समस्याओं तथा कठिनाइयों को सुलझाने की क्षमता दे रखी है। मनुष्य उस क्षमता का प्रयोग करके अपने लिए सुख तथा आनन्द का मार्ग खोज सकता है तथा साथ ही दुःख रुपी अंधकार को दूर कर सकता है।