बसंत पंचमी का पर्व माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस पंचमी पर विशेष रूप से विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। इस साल की बसंत पंचमी को लेकर ज्योतिषियों में काफी मतभेद है। कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि चतुर्थी तिथि में 12 फरवरी को पंचमी का क्षय होने से बसंत पंचमी इसी दिन मनाई जाएगी। वही दूसरी ओर उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा ने कहा है, इस साल 13 फरवरी को पंचमी के में ही सूर्योदय होगा, इस कारण बसंत पंचमी का ये पर्व 13 फरवरी के दिन मनाया जाना शास्त्र सम्मत रहेगा। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा अगर पुरे विधि-विधान से की जाए तो विद्या व बुद्धि के साथ सफलता भी निश्चित मिलती है। मां सरस्वती की पूजा बसंत पंचमी पर इस विधि से करे।
पूजन विधि – सबसे पहले सुबह स्नान करके पवित्र आचरण, वाणी के संकल्प के साथ ही देवी सरस्वती की पूजा विधि-विधान करें। इस दिन पूजा में गंध, अक्षत यानी चावल के साथ विशेष तौर पर सफेद और पीले फूल, सफेद चंदन तथा सफेद वस्त्र देवी सरस्वती को चढ़ाएं जाते है। प्रसाद के लिए पीले चावल, खीर, दूध, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू, घी, नारियल, शक्कर व मौसमी फल चढ़ाएं आदि का भोग लगाना अच्छा माना जाता है। इसके बाद घी के दीप जलाकर आरती कर माता सरस्वती से बुद्धि और कामयाबी की कामना करते है।
इस स्तुति से करें मां सरस्वती की उपासना
यदि किसी विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में नहीं लगता हैया वो पढ़ना चाहते, पर पढ़ नहीं पाते है, वे मां सरस्वती की नियमित रूप से पूजन करें तो उन्हें अतिशीघ्र लाभ प्राप्त होगा। यदि विद्यार्थी स्तुति का पाठ मां सरस्वती के सामने करे तो उसकी स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा उसकी सभी मनोकामनाएं मां सरस्वती पूरी करती हैं।
इस मूल मंत्र से देवी सरस्वती की पूजा करे –
सभी देवी व देवताओं का अपना एक मूल मंत्र होता है, आवाहन जिससे उनका किया जाता है। मुख्य रूप से यह मंत्र देवी-देवताओं के आवाहन के लिए बने होते हैं साथ ही यह मंत्र विशेष सिद्ध होते हैं। वेदों में बताया गया है, देवी सरस्वती का ‘अष्टाक्षर मंत्र’ मूल मंत्र है- श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा। आप जब भी माँ सरस्वती की पूजा आराधना करें तथा भोग लगाये तो इस मूल मंत्र का जाप अवश्य ही करना चाहिए। इससे माँ सरस्वती आपकी सभी मनोकामना को पूरा करेगी। पूजन के समय निम्नलिखित श्लोकों से भगवती सरस्वती देवी की आराधना करें-
सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्र्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।
वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।