आज कल के बच्चे खेलने-कूदने में ज्यादा व्यस्त रहते है। अगर उन्हें किसी काम को करने को कहाँ जाये तो वो जल्दी नहीं करते या अपने मुताबिक पूरा करते है। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है कि जब आपका मन पूर्णतया किसी वस्तु में मग्न रहता है अर्थात जब आप बच्चे से खेल रहे होते हैं या जब आप सूर्यअस्त्र के समय उसे डूबता हुआ देख रहे होते हैं तो मन घबराता नहीं है अर्थात उस वक्त आप बिल्कुल गुस्से में नहीं होता। जब आपका मन शांत होता है, आराम की स्थिति में आपका शरीर होता है उस समय आपका शरीर आपके मन का साथ देता है। तनाव रहित जब आपका मन होता है तब एग्जाम के समय यह अपनी उच्चत्तम स्थिति में कार्यरथ होता है और शरीर को भी मजबूत रहता है।
क्या आप ऐसा अपने बच्चे के लिए नहीं चाहते हैं? अपने कितनी दफा आपने बच्चों को पढ़ाई करते वक्त तनाव में या गुस्सा करते हुए देखा है? उनके कंधे झुक जाते हैं और कफी सख्त हो जाते हैं और साथ ही आंखों के पास चिंता एकत्रित हो जाता है, इसकी वजह से पाचन तंत्र भी ठीक से कार्य नहीं करता बंद कर देता है और शरीर की अन्य बीमारियां भी प्रवेश करने लगती हैं। आम तौर पर हम यह सोचते हैं कि हमारे बच्चे में जीवन में आगे बढ़ने की क्षमता है, अनेक प्रकार की कठिन समस्याओं को सुलझाने की हिम्मत रखते है और उनमें सृजनात्मकता है। परन्तु हमारा ध्यान बच्चों को तनाव के नकारात्मक प्रभाव से बचाता है और उनके मन को ताजा व स्वच्छ रखता है। ध्यान उन्हें स्पष्टता व सृजनात्मकता से सोचने की क्षमता प्रदान करता है।