महान ग्रन्थ महाभारत में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भीष्म पितामह ने अपनी सौतली माँ को वचन दिया था कि वह आजीवन अविवाहित ही रहेंगे और ब्रह्मचर्य का पालन भी करेंगे। तमाम उम्र अपने इस वचन का पालन भीष्म पितामह ने किया। लेकिन पूर्वजन्म में भीष्म पितामह विवाहित थे और अपनी पत्नी के कहने पर उन्होंने एक ऐसा पाप कर दिया था जिसका दंड उन्हें अगले जन्म में भीष्म बनकर भुगतना पड़ा। कथा यह है कि भीष्म पितामह का जन्म एक शाप की वजह से हुआ था जो उनको अपने पूर्वजन्म में पत्नी से मिला था। अपने पूर्वजन्म में भीष्म एक वसु थे जिनका नाम द्यौ था। इसी जन्म में पत्नी की एक जिद मानने के कारण उन्हें शाप भयानक शाप मिला था जिसका अंत महाभारत के युद्ध में हुआ था।
भीष्म की सुंदर पत्नी ने एक बार महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में नंदनी गाय को देख लिया। इसके बाद से वह उस गाय को पाने के लिए मचल गयी और अपने पति द्यौ से विनती किया कि उनके लिए नंदनी गाय किसी तरह ला दें। द्यौ ने पत्नी की बात रखने के लिए अपने भाइयों के साथ गाय को चुरा लिया। महर्षि वशिष्ठ ने जब देखा कि नंदनी गाय आश्रम में नहीं है तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बातें जान ली। क्रोधित होकर वशिष्ठ मुनि ने वसुओं को शाप दिया कि तुम सभी का स्वर्ग से पतन होगा और पृथ्वी पर जन्म लेकर अपने अपराध का प्राश्चित करना पड़ेगा। शाप से घबराए हुए वसुओं ने जब वशिष्ठ मुनि से क्षमा मांगी तो द्यौ के अलावा सभी को क्षमा कर दिया। इस कारण वश भीष्म पितामह को लंबे समय तक पृथ्वी पर रहना पड़ा जबकि उनके अन्य भाईयों ने देवी गंगा के गर्भ से जन्म लेकर तुरंत मुक्ति पा लिया। इस कथा का उल्लेख महान ग्रन्थ महाभारत के आदिपर्व में मिलता है।