3 दिसंबर से 16 दिसंबर 1971 तक चले भारत-पाक युद्ध में हमारी जीत का औपचारिक ऐलान आज के ही दिन हुआ था। ये गांव 28 हजार फीट ऊंचाई वाले दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे पहाड़ कराकोरम के करीब बसे हैं। इंडियन आर्मी ने 1971 युद्ध में रातोंरात पाकिस्तान के इन गांवों पर कब्जा कर लिया था। पढ़ें पाकिस्तान बॉर्डर के सबसे करीब बसे इन भारतीय गांवों (टुरटुक और तयाशी) में कब्ज़ा करने का किस्सा। पहले आर्मी ने दरवाजा खटखटाया, फिर चाय देकर कहा–वेलकम टू इंडिया…
100 जवानों के साथ -20 डिग्री सेल्सियस में किया कब्जा
- इस समय लेह में आने वाले ये दोनों गांव (टुरटुक और तयाशी) तब पाकिस्तान के बाल्टिस्तान में आते थे। इनमें से टुरटुक पर लेह में मौजूद इंडियन आर्मी के मेजर चेवांग रिनचेन ने 14 दिसंबर की रात 10 बजे कब्जे का प्लान बनाया।
- मेजर रिनचेन ने अपने 100 जवानों के साथ -20 टेम्प्रेचर वाली ठंड के बीच नदी के रास्ते जाने कि बजाये पहाड़ पार कर टुरटुक पर कब्जा करने की प्लानिंग की।
- ठण्ड ज्यादा होने के कारण पीने का पानी जम रहा था इसलिए जवानों ने पानी के पानी की बोतल में रम मिलाई और पीते हुए पहाड़ की ओर चल दिए।
- दरअसल, उस दौरान पाकिस्तान की आर्मी ईस्ट में चल रहे भारत-बांग्लादेश युद्ध में बिजी थी। बाल्टिस्तान वाले भारत-पाक बॉर्डर पर फोर्स ना के बराबर थी। इसी का फायदा उठाकर 4-5 घंटे में रिनचेन ने टुरटुक गांव पर कब्जा कर लिया।
- इतना ही नहीं, इस युद्ध में भारतीय आर्मी ने पाकिस्तान के 13 हजार स्केवयर किमी एरिया पर भी कब्जा किया था।
- उस समय के रिनचेन के ऑफिसर अहलूवालिया ने एक इंटरव्यू में कहा था कि रिनचेन ने ये कब्जा बिना आर्मी सपोर्ट, बिना तोपखानों, मिसाइल या युद्ध विमान के ही सिर्फ अपनी बहादुरी और समझदारी के दम पर जीता था।
पाकिस्तान कब्जे के 1 साल तक गांव वापस लेने के लिए लगाता रहा जुगाड़
- गांव के मौजूदा प्रधान अब्दुल मजीद ने कहा कि 1971 में टुरटुक और तयाशी पर कब्जे के 1 साल तक पाकिस्तान आर्मी और सरकार इन्हें वापस पाने के लिए जुगाड़ लगाती रही। लेकिन असफल रही।
- अंत में 1972 शिमला समझौते में भारत ने पाकिस्तान को 13 हजार स्क्वेयर किमी एरिया तो वापस कर दिया लेकिन उस दौरान कब्जा किए गए गांव नहीं दिए।
- फिर पाकिस्तान ने हिम्मत हारकर युद्ध के दौरान भारत द्वारा कब्जाए 5 गांवों को वापस ना लेने की बात मान ली। तब से टुरटुक और तयाशी गांव भारत का ही हिस्सा हैं।
- रिनचिन द्वारा इन गांवों पर कब्जा सरकार और आर्मी की लिखित सहमति के बिना ही हुआ था।