
अग्नि बिना हवन, आग बिना चूल्हा, अग्नि बिना दीपक किसी काम के नहीं होते हीक उसी प्रकार आस्था बिना भजन, आस्था बिना भक्ति आपके मन को शांति नहीं दे सकती है। जब तक व्यक्ति का विचार व्यक्ति का विश्वास एह समान नहीं हो जाता तब तक वह अग्नि रूप यज्ञ नहीं हो सकता। इस दुनिया में तीन का महान उपकार है। उस उपकार को छोड़ना ही नहीं है। माता-पिता और गुरु का! हमें जो रास्ते पर लाए हों उनका और इन तीनों का उपकार को भुलाया जाए ऐसा नहीं है।
संत गोविंद जी का कहना है कि अपने माता-पिता को मानते हो तो रिश्ते से नहीं बल्कि मन की आस्था से मानो। गुरु माता-पिता के लिए सच्ची आस्था रखने वाला पुत्र बिना किसी विघ्न के ही आगे बढ़ जाता है। यह आष्टा तो आस्था वालों की नगरी है। खुद का भला चाहने वाला व्यक्ति भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता है लेकिन जो दूसरों के लिए जीता है उसकी मदद करता है और लोगो का सम्मान करता है भगवान उसके पास खुद चलकर आते हैं। जो व्यक्ति भूखे को रोटी, गरीब को कपड़े, दुखी पर दया भाव और माता-पिता की सेवा करेगा तो मुरलीवाला कृष्णा एक दिन तुम्हारे आंगन में होगा। जब भगवान के प्रति भक्त का भाव और आस्था कम हो जाता है तो भगवान उससे हो जाते हैं।